“दीपक”
प्रो.(डॉ.) शशि तिवारी
ओ दीपक ! तू जलते रहना ।
ओ दीपक ! तू जलते रहना।।
कभी अँधेरा जब छा जाये
दूर-दूर कुछ नज़र न आये
नेह में डूबी बाती लेकर
ज्योति-राह पर चलते रहना।
ओ दीपक ! तू जलते रहना।।
तेरा जीवन जलने में है
पीर हृदय में पलने में है
सारे सुख-दु:ख पीकर यूँ ही
आँसू बन कर ढलते रहना।
ओ दीपक ! तू जलते रहना।।
जहाँ उजाला तू करता है
वहाँ अँधेरे को हरता है
भले राह में ठोकर खाये
गिर-गिर सदा सँभलते रहना।
ओ दीपक ! तू जलते रहना।।
दीपक जैसे हम हो जाएँ
अपना जीवन सफल बनाएँ
और एक दिन सूरज बनकर
प्रातः हमें निकलते रहना।
ओ दीपक ! तू जलते रहना।।