“ग़ज़ल”
यूँ देखो तो लोग बड़े ही भोले-भाले हैं,
ऊपर से चिकने-चुपड़े भीतर से काले हैं।
धनवानों को रब शायद दिल देना भूल गया,
मुफ़लिस ऐसा लगता है असली दिल वाले हैं।
वक़्त को किसके साथ रियायत करते देखा है,
ऊपर वाले मालिक के सब खेल निराले हैं।
पत्थर मत बरसाओ अपने ही रखवालों पर,
वो भी तुम जैसे ही बीवी-बच्चों वाले हैं।
फूलों को तो मसल दिया बेदर्दी आँधी ने,
उस पर भी ये ज़ुल्म कि ख़ुशबू पर भी ताले हैं।
ग़र्दिश में तारे हैं फिर भी हिम्मत मत हारो,
वो ही कल सूरज होंगे जो हिम्मत वाले हैं।
प्रो.(डॉ.) शशि तिवारी