“मेरी एक ग़ज़ल…….”
तेरा बिन बतलाये आना अच्छा लगता है,
आके फिर दिल पे छा जाना अच्छा लगता है।
दूरी दिल से दिल की कितनी चारों ओर हुई,
तेरा सब पे प्यार लुटाना अच्छा लगता है।
तेज़ हवाएँ चलती हैं कुछ आँधी के जैसे,
ऐसे में महफ़ूज़ ठिकाना अच्छा लगता है।
भूखे मुफ़लिस को रातों में नींद नहीं आती,
उसको जाकर कौर खिलाना अच्छा लगता है।
मज़हब के दीवाने जब लड़ते हैं आपस में,
उनमें मुझको मेल कराना अच्छा लगता है।
डॉ. शशि तिवारी